राष्ट्रीय शिक्षा नीति (National education policy) पर अंतर्राष्ट्रीय कार्यशाला,भाषा एवं साहित्य शिक्षण के आयाम
नई शिक्षा नीति (National education policy) में लोक विद्या के माध्यम से परंपरा, विरासत ,लोकगीतों को बचा के रखने का सपना साकार होगा।
रिपोर्ट: डॉ राम शंकर सिंह (वरिष्ठ पत्रकार)
वाराणसी, 09 मार्च: National education policy: वाराणसी हिंदी विभाग,वसंत महिला महाविद्यालय, राजघाट, वाराणसी तथा महात्मा गाँधी अंतर्राष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय के संयुक्त तत्वावधान में शिक्षा विद्यापीठ पंडित मदन मोहन मालवीय राष्ट्रीय शिक्षक एवं शिक्षण अभियान, शिक्षा मंत्रालय,भारत सरकार के अंतर्गत आयोजित द्वि साप्ताहिक अंतर्राष्ट्रीय कार्यशाला के नवें दिन के प्रथम सत्र में श्री अतुल द्विवेदी ( लेखक एवं संस्कृतिकर्मी, प्रयागराज) ने अपना वक्तव्य ‘नई शिक्षा नीति-(National education policy) लोक विद्या से लोक कल्याण तक’ विषय पर दिया।
नई शिक्षा नीति (National education policy) में लोक विद्या के माध्यम से परंपरा, विरासत ,लोकगीतों को बचा के रखने का सपना साकार होगा।लोक विद्या के अंतर्गत लोकल को वोकल करने की बात है, भारत को विश्व गुरु बनाने की बात है आत्मनिर्भर भारत बनाने की बात है। वह तभी संभव हो पाएगा जब एक- एक कण को जोड़कर अपने पाठ्यक्रमों, विद्यालयों और साहित्य से जोड़ पाएंगे।
लोक विद्या के माध्यम से लोक कल्याण तभी संभव होगा जब हमारे जो लोक कलाकार हैं, हमारे जो लोक परंपरा के वाचक हैं, उन्हें हम इस कार्यक्रमों से, इस नीति से जोड़ पायें।
द्वितीय सत्र के वक्ता प्रो.बाबुराम त्रिपाठी (विजिटिंग प्रोफेसर, प्राच्य एवं आधुनिक भाषा विभाग, केंद्रीय उच्च तिब्बती शिक्षा संस्थान, सारनाथ, वाराणसी) ने नई शिक्षा नीति (National education policy) के आलोक में भाषा की शुद्धता और वर्तनी विषय पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा मातृभाषा के ज्ञान के बिना हृदय की पीड़ा का निवारण संभव नहीं है। हिंदी भाषा की वैसे तो कई विशेषताएं हैं, परंतु हिंदी की सबसे बड़ी खूबी है कि यह एक वैज्ञानिक भाषा है।
इसका कारण यह है कि हिंदी की पूर्वज संस्कृत हैं जो खुद अत्यंत वैज्ञानिक भाषा हैं। उदाहरण स्वरूप उन्होंने बताया नुक़्ता न लगाने की वजह से कैसे अर्थ का अनर्थ हो सकता है। अंततः लघुकथा द्वारा उन्होंने भाषा की शुद्धता और वर्तनी की सूक्ष्मता पर प्रकाश डाला!
तृतीय सत्र के वक्ता प्रो.दिनेश कुमार चौबे (प्रोफेसर ,हिंदी विभाग,पूर्वोत्तर पर्वर्तीय विश्वविद्यालय,नेहू, शिलांग, मेघालय) ने अपने व्याख्यान में तुलनात्मक अध्ययन के स्वरूप के महत्त्व तथा बहुआयामी पक्ष को बताया।तुलनात्मक अध्ययन से विमर्श में विस्तार,विशिष्टता आती है और संकुचित दृष्टिकोण से हम मुक्त होते हैं।राष्ट्र के मध्य सांस्कृतिक सम्बन्ध स्थापित होने के साथ एक दूसरे की महत्ता को स्वीकार करते हैं। विभिन्न त्योहार ,नायक ,सांस्कृतिक विरासत के परिप्रेक्ष्य में तुलनात्मक अध्ययन पर प्रकाश डाला।
डॉ. बृहस्पति भट्टाचार्य (सहायक प्राध्यापक, संस्कृत विभाग, वसंत महिला महाविद्यालय राजघाट वाराणसी ) ने उच्चारण विमर्श,विनियमन,एकरूपता प्राप्ति के संभावित उपाय पर व्याख्यान दिया।हम उच्चारण के नियमन द्वारा भाषा की स्थिति को मजबूत कर सकते हैं। विशेष रूप से हिंदी के उच्चारण को ध्यान में रख हम आत्मविश्वास लाकर बौद्धिक रूप से समृद्ध हो सकते।भाषा को विखंडन से बचाने के लिए उच्चारण कीशुद्धता और वर्तनी पर ध्यान देना होगा।
कार्यक्रम का संचालन डॉ. एन मल्लिकार्जुन तथा डॉ. अनुराग त्रिपाठी ने किया। कार्यक्रम की संयोजक डॉ. बंदना झा ने अतिथियों का स्वागत और धन्यवाद ज्ञापन किया।
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