इन्द्रजव करता है लिंगवृद्धि
- वानस्पतिक नाम- Wrightia tinctoria (रायटिया टिंक्टोरिया) कुल- एपोसायनेसी (Apocynaceae)
- हिन्दी- इन्द्रजव, मीठा इंद्रजव
- अंग्रेजी- पाला इंडिगो प्लांट (Pala Indigo Plant)
- संस्कृत- ह्यामारका
इन्द्रजव का पेड़ अक्सर जंगलों में देखा जाता और इसके बीज जौ की तरह दिखाई देते हैं, इसलिए इसे इन्द्रजव कहा जाता है। इसकी पतली लम्बी फलियों का अचार भी बनाया जाता है। इसका वानस्पतिक नाम रायटिया टिंक्टोरिया है। आदिवासियों के अनुसार मुनक्का, दालचीनी, दारुहल्दी, नीम की छाल और इन्द्रजव की समान मात्रा का काढ़ा बनाकर शहद में मिलाकर पिया जाए तो मुँह के छाले तुरंत ठीक हो जाते हैं। डॉँग-गुजरात के आदिवासी लिंग वृद्धि के लिए इसके बीजों के प्रयोग की बात करते हैं। उनके अनुसार यदि इन्द्रजव के सूखे बीजों (10 ग्राम) को दूध में गाढ़ा पीस लिया जाए और इस लेप को प्रतिदिन रात में लिंग पर लेपित कर सूती कपड़ा बाँधा जाए और सुबह धो लिया जाए तो कुछ माह में लिंग आकार में वृद्धि होती है,
हालाँकि इसके कोई भी वैज्ञानिक प्रमाण नहीं हैं। इन्द्रजव की छाल चूर्ण और सेंधा नमक की समान मात्रा गीले घाव पर लगाई जाए तो घाव जल्दी सूखने लगता है। इसके बीजों को पीसकर 2 ग्राम सुबह शाम चबाया या पानी के साथ घोलकर पिया जाए तो पेट के कीड़े मर जाते हैं । इन्द्रजव की छाल और गिलोय का तना समान मात्रा में लेकर काढ़ा बनाया जाए और लम्बे चले आ रहे बुखार के रोगी को दिया जाए तो आराम मिल जाता है। पातालकोट के आदिवासी रात को इस पेड़ की छाल को पानी में डूबोकर रख देते हैं और सुबह इस पानी को पी लेते हैं, इनके अनुसार इससे पुराना बुखार ठीक हो जाता है ।
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