आओ ख़ुशी मनाएँ कि गणतन्त्र दिवस है, सबको गले लगाएँ कि गणतन्त्र दिवस है
आओ ख़ुशी मनाएँ कि गणतन्त्र दिवस है
सबको गले लगाएँ कि गणतन्त्र दिवस है
हम शेख़- बरहमन नहीं हैं , भारतीय हैं
सब मिल के गुनगुनाएँ कि गणतन्त्र दिवस है
मौसम ने पूछा ,किसलिए ये मस्तियाँ इतनी
कहने लगीं हवाएँ कि गणतन्त्र दिवस है
इस जुर्म की आवाज़ को, दहशत के शोर को
अब भी चलो दबाएँ कि गणतन्त्र दिवस है
सबके दिलों में प्यार-मुहब्बत की बात हो
नफ़रत को भूल जाएँ कि गणतन्त्र दिवस है
जो चोट कर रहे हैं रोज़ संविधान पर
वे आज तो शर्माएँ कि गणतन्त्र दिवस है
वह कौन है जो आँसुओं को पोछता नहीं
चलकर उसे बताएँ कि गणतन्त्र दिवस है
दे देंगे जान , देश पुकारेगा जब “यती”
आओ क़सम ये खाएँ कि गणतन्त्र दिवस है
*हमें पूर्ण विश्वास है कि हमारे पाठक अपनी स्वरचित रचनाएँ ही इस काव्य कॉलम में प्रकाशित करने के लिए भेजते है। अपनी रचना हमें ई-मेल करें writeus@deshkiaawaz.in