पर्यावरण के प्रति हम कितने संवेदनशील ?
काव्य
आकाश के फेफड़ो में धुंआ भरती चिमनिया
धरती के आँचल को अनवरत सोखते ट्यूबवेल।1।
नदियों को जार जार करता बजरी खनन
समंदर को मारता केमिकल और प्लास्टिक।2।
खाद्यान्न में अत्यधिक घुलता हुआ कीटनाशक
फलो में विटामिन से ज्यादा भर गया जहर।3।
कुँए, तालाब,बावड़ीया,पोखर गुम हो गए
अनगिनत पेड़ो,पक्षियों की प्रजातियां विलुप्त।4।
और बड़ी शान से साल में लगाते है एक पौधा
बन जाते है संवेदनशील पर्यावरण सरंक्षक।5।
***********
हमें पूर्ण विश्वास है कि हमारे पाठक अपनी स्वरचित रचनाएँ ही इस काव्य कॉलम में प्रकाशित करने के लिए भेजते है।
अपनी रचना हमें ई-मेल करें
writeus@deshkiaawaz.in