sheetal yadav image

IIT Roorkee: आई आई टी रुड़की की पी एच डी स्कॉलर शीतल यादव ने “लोकडाउन में महिलाओं” पर रिसर्च में क्या पाया, जानिए इस रिपोर्ट में…

नई दिल्‍ली, 20 जून: IIT Roorkee: कोरोना वायरस ने भारत सहित पूरी दुनिया को बदल दिया है, लेकिन दुर्भाग्य से इससे हमारी सांप्रदायिक, नस्लीय, जातिवादी और महिला विरोधी सोच और व्यवहार में कोई फर्क नहीं पड़ा है। आज दुनिया भर के कई मुल्कों से खबरें आ रही हैं कि लॉकडाउन के बाद से महिलाओं के साथ घरेलू हिंसा के मामलों में जबरदस्त उछाल आया है। 

वैसे तो किसी भी व्यक्ति के लिए उसके घर को सबसे सुरक्षित स्थान माना जाता है, लेकिन जरूरी नहीं है कि महिलाओं के मामले में भी यह हमेशा सही हो। लॉकडाउन से पूर्व भी दुनिया भर में महिलाएं घरेलू और बाहरी हिंसा का शिकार होती रही हैं। 

IIT Roorkee में महिलाओं पर रिसर्च कर रही प्रख्यात PhD स्कॉलर शीतल यादव बताती हैं कि…

Advertisement

घरेलू हिंसा के साथ दिक्कत यह है कि इसकी जड़ें इतनी गहरी और व्यापक हैं कि इसकी सही स्थिति का अंदाजा लगा पाना बहुत मुश्किल है। यह एक ऐसा अपराध है, जिसे अक्सर नजरअंदाज या छुपा लिया जाता है, औपचारिक रूप से इसके बहुत कम मामले रिपोर्ट किए जाते हैं और कई बार तो इसे दर्ज करने से इनकार भी कर दिया जाता है। जयादातर महिलाएं शादी बचाने के दबाव में इसे चुपचाप सहन कर जाती हैं। हमारे समाज और परिवारों में भी विवाह और परिवार को बचाने के नाम पर इसे मौन या खुली स्वीकृति मिली हुई है। राज्य और प्रशासन के स्तर पर भी कुछ इसी प्रकार यही मानसिकता देखने को मिलती है। 

पूर्व के अनुभव बताते हैं कि महामारी या संकट के दौर में महिलाओं को दोहरे संकट का सामना करना पड़ता है। एक तरफ तो महामारी या संकट का प्रभाव तो उनपर पड़ता ही है, इसके साथ ही महिला होने के कारण इस दौरान उपजे सामाजिक-मानसिक तनाव और मर्दवादी खीज का ‘खामियाजा” भी उन्हें ही भुगतना पड़ता है। 

इस दौरान उनपर घरेलू काम का बोझ तो बढ़ता ही है साथ ही उनके साथ “घरेलू हिंसा” के मामलों में भी तीव्रता देखने को मिलती है। आज एक बार फिर दुनिया भर में कोरोनावायरस की वजह से हुए लॉकडाउन से महिलाओं की मुश्किलें बढ़ गयी हैं, इस दौरान महिलाओं के खिलाफ हो रही घरेलू हिंसा के मामलों में काफी इजाफा देखने को मिल रहा है।  स्थिति की गंभीरता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि संयुक्त राष्ट्र द्वारा दुनिया के कई मुल्कों में लॉकडाउन की वजह से महिलाओं और लड़कियों के प्रति घरेलू हिंसा के मामलों में बढ़ोत्तरी दर्ज किए जाने को भयावह बताते हुए इस मामले में सरकारों से ठोस कार्रवाई की अपील की गई है।

Advertisement
Whatsapp Join Banner Eng

भारत में भी स्थिति गंभीर है और इस मामले में राष्ट्रीय महिला आयोग को सामने आकर कहना पड़ा है कि लॉकडाउन के दौरान पुरुष अपनी कुंठा और गुस्सा महिलाओं पर निकाल रहे हैं। आयोग के मुताबिक पहले चरण के लॉकडाउन के एक सप्ताह के भीतर ही उनके पास घरेलू हिंसा की कुल 527 शिकायतें दर्ज की गई। यह वे मामले हैं जो आनलाईन या हेल्पलाइन पर दर्ज किए गए हैं। 

अंदाजा लगाया जा सकता है कि लॉक डाउन के दौरान वास्तविक स्थिति क्या होगी। दरअसल इस संकट के समय महिलाओं को लेकर हमारी सामूहिक चेतना का शर्मनाक प्रदर्शन है, जिसपर आगे चलकर गंभीरता से विचार किए जाने की जरूरत है। हम एक लिंगभेदी मानसिकता वाले समाज हैं जहां पैदा होते ही लड़कों और लड़कियों में फर्क किया जाता है। 

यहां लड़की होकर पैदा होना आसान नहीं है और पैदा होने के बाद एक औरत के रूप में जिंदा रहना भी उतना ही चुनौती भरा है। पुरुष एक तरह से महिलाओं को एक व्यक्ति नहीं “संपत्ति” के रुप में देखते हैं। उनके साथ हिंसा, भेदभाव और गैरबराबरी भरे व्यवहार को अपना हक समझते हैं। 

Advertisement

यह भी पढ़े…..ओम का उच्चारण और योग के बीच इस्लाम धर्म ले आये कांग्रेस नेता, पढ़ें पूरी खबर

इस मानसिकता के पीछे समाज में मर्दानगी और पितृसत्तात्मक विचारधारा का हावी होना है। कोई भी व्यक्ति इस तरह की सोच को लेकर पैदा नहीं होता है बल्कि बचपन से ही हमारे परिवार और समाज में बच्चों का ऐसा सामाजिकरण होता है जिसमें महिलाओं और लड़कियों को कमतर व पुरुषों और लड़कों को ज्यादा महत्वपूर्ण मानने के सोच को बढ़ावा दिया जाता है। 

हमारे समाज में शुरू से ही बच्चों को सिखाया जाता है कि महिलाएं पुरषों से कमतर होती हैं बाद में यही सोच पितृसत्ता और मर्दानगी की विचारधारा को मजबूती देती है। मर्दानगी वो विचार है जिसे हमारे समाज में हर बेटे के अन्दर बचपन से डाला जाता है, उन्हें सिखाया जाता है कि कौन सा काम लड़कों का है और कौन सा काम लड़कियों का है।

Advertisement