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निभाता है कौन….

ग़ज़ल

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मेरी आवाज़ से आवाज़ मिलाता है कौन
प्यार के गीत सरे-बज़्म सुनाता है कौन

एक मुद्दत हुई है,मैंने भुलाया था उसे
फिर मेरे ख़्वाबों में चुपके से ये आता है कौन

हाले-दिल किससे कहूँ, पूछने वाला ही नहीं
बेवजह इश्क़ में,अब अश्क बहाता है कौन

बात की बात पे जां हार दिया करते थे
इस नये दौर में,अब बात निभाता है कौन

कोई दीवाना ही इस सिम्त से गुज़रा होगा
राहे-पुरखार में बेख़ौफ़ यूँ जाता है कौन

~क़ादिर हनफ़ी

*हमें पूर्ण विश्वास है कि हमारे पाठक अपनी स्वरचित रचनाएँ ही इस काव्य कॉलम में प्रकाशित करने के लिए भेजते है।
अपनी रचना हमें ई-मेल करें writeus@deshkiaawaz.in

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