Covid-19: सबकी जीवन-रक्षा ही राष्ट्रीय कर्तव्य है: गिरीश्वर मिश्र
Covid-19: दिल्ली , लखनऊ , बनारस , बंगलोर , बंबई और अन्य सभी शहरों में चिकित्सकीय ढांचा चरमराने लगा और अस्पताल में बेड , दवा , और आक्सीजन की किल्लत शुरू हो गई.
Covid-19: आज कोविड विषाणु से उपजी महामारी के अप्रत्याशित प्रकोप ने आज सबको हिला कर रख दिया है. इसके पहले स्वास्थ्य की विपदाएं स्थानीय या क्षेत्रीय विस्तार तक सीमित रहती थीं पर कोवड-19 से उपजी स्वास्थ्य की समस्या विश्वव्यापी है और उसकी दूसरी लहर पूरे भारत पर ज्यादा ही भारी पड़ रही है. आज कोविड की सुनामी में कई-कई लाख लोग प्रतिदिन इसकी चपेट में आ रहे हैं और सारी व्यवस्थाएं तहस नहस हो रही हैं . कोविड के प्रसार और जीवन के तीव्र नाश की कहानी दिल दहलाने वाली होती जा रही है. इसके आगोश में युवा वर्ग के लोग भी आने लगे हैं और संक्रमण के वायु के माध्यम से होने की पुष्टि ने अज्ञात भय की मात्रा बढ़ा दी है और कुछ समझ में न आने से आम जनता में भ्रम और भय का वातावरण बन रहा है.
टी वी पर पुष्ट अपुष्ट सूचनाओं की भरमार हो रही है और उन सब को देख कर मन को दिलासा दिलाने की जगह मौत के मडराने का अहसास ही बढ़ता जा रहा है . सोशल मीडिया में भी तरह-तरह के सुझाव और सरोकार को साझा करते लोग नहीं थक रहे. इस माहौल में जिस धैर्य और संयम से स्वस्थ जीवन शैली अपनाने की जरूरत है उसकी तरफ बहुत थोड़े चैनेल ही ध्यान दे रहे हैं. ऐसे में चिंता , भय और दुविधा की मनोवृत्तियाँ हाबी हो रही हैं. लोग दहशत में आ रहे हैं और जीवन की डोर कमजोर लगने लगी है .
भारत की आबादी , जनसंख्या का घनत्व , पर्यावरण-प्रदूषण और खाद्य सामग्री में मिलावट , स्वास्थ्य-सुविधाओं की उपेक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं के निजीकरण जैसे बदलाव ने साधारण नागरिक के लिए स्वस्थ रहने की चुनौती को ज्यादा ही जटिल बना दिया . पिछले कुछ वर्षों में स्वास्थ्य की आधी-अधूरी , लंगड़ाती चलती सार्वजनिक या सरकारी व्यवस्था और भी सिकुड़ती चली गई और सरकारों ने इसे निजी मसला बनाना शुरू कर दिया. स्वास्थ्य के क्षेत्र में निजीकरण ने स्वास्थ्य सुविधाओं तक पहुँच को आम जनता से दूर करना शुरू कर दिया . निजी क्षेत्र में जन-सेवा की जगह व्यापार में नफ़ा कमाना ही मुख्य लक्ष्य बन गया. दूसरी ओर इसका दबाव झेलती जनता के सामाजिक, नैतिक और आर्थिक आचरण में विसंगतियां भी आने लगीं . कोविड (covid-19) जैसी विकट त्रासदी ने सबकी पोल खोल दी है . यह अलग बात है कि त्रासदी का ठीकरा हर कोई दूसरे के सिर पर फोड़ने को तत्पर है और जीवन मृत्यु के प्रश्न में भी सियासी फ़ायदा ढूँढा जा रहा है.
फरवरी महीने तक कोविड के असर में गिरावट दिखने से सबके नजरिये में ढिलाई आ गई थी. इतनी , कि जो स्वास्थ्य सुविधाएं कोविड (covid-19) के लिए शुरू हुई थीं उनको बंद या स्थगित कर दिया गया था. साथ ही आम आदमी राहत की सांस लेने लगे थे मानो इस कष्ट से मुक्ति मिलने वाली है . बाजार और विभिन्न आयोजनों में भीड़-भाड़ बढ़ने लगी तथा सामाजिक दूरी बनाए रखने और मास्क लगाने की बचाव की तरकीबों को नजर अंदाज किया जाने लगा. पर मार्च में सब कुछ बदलने लगा. अचानक तेजी से कोविड के मरीजों की संख्या बढी तो जो औचक पकड़े गए तो जो चारों और अफरा तफरी मची उसका किसी को अनुमान नहीं था .
- आज मरीज और अस्पताल सभी त्राहि माम की गुहार लगा रहे हैं . दिल्ली , लखनऊ , बनारस , बंगलोर , बंबई और अन्य सभी शहरों में चिकित्सकीय ढांचा चरमराने लगा और अस्पताल में बेड , दवा , और आक्सीजन की किल्लत शुरू हो गई. इन सबकी कालाबाजारी शुरू हो गई. नैतिकता और मानवीयता को दर किनार कर बाजार में कई -कई गुने महंगे मूल्य पर दवा, आक्सीजन सिलिंडर और इंजेक्शन बिकने लगे. दूसरी तरफ सप्ताहांत की बंदी की खबर के साथ शराब की दूकानों पर लम्बी कतार लग गई.
आज की त्रासदी यह है कि यदि सरकारी व्यवस्था ऎसी है कि लोग वहां जाने से घबड़ा रहे हैं और अक्सर उसका लाभ जिनकी पहुँच है उन्हीं को मयस्सर है तो निजी अस्पताल सेवा की मनचाही कीमत माँगते हैं और दस तरह से मरीज को चूस रहे हैं. आज सब तरफ रोगियों का तांता लगा है और अस्पतालों के अन्दर , बाहर सड़क पर लोग डाक्टरी मदद को तरस रहे हैं. आक्सीजन की कमी जिस तरह बढी है और रोगियों के प्राण संकट में पड़ रहे हैं वह सरकारी तैयारी और व्यवस्था को प्रश्नांकित कर रहे हैं.मुम्बई के एक अस्पलाल में आई सी यू में मरीज मरते हैं और नासिक में आक्सीजन लीक होने से बैस रोगी मरते हैं . फिर राजधानी दिल्ली की इस खबर ने कि कई नामी गिरामी बड़े अस्पतालों में आक्सीजन के अभाव में रोगी दम तोड़ रहे हैं , स्वास्थ्य के क्षेत्र में राष्ट्रीय आपात काल का ही उद्घोष कर दिया है .
आक्सीजन की व्यवस्था को लेकर जिस तरह की राजनैतिक तूं तूं मैं मैं दिख रही है वह व्यवस्था और प्रबंधन के नाम पर हुई और हो रही कोताही को कम नहीं कर सकेगी. आज जीवन हानि की दिल दहलाने वाली घटनाएं हमारे दायित्व बोध पर सवाल उठाती हैं. टीकाकरण को ले कर जिस तरह का रवैया अपनाया जा रहा है वह बेहद खतरनाक और चिंताजनक है. भारत जैसे विशाल देश की जरूरत समझनी होगी और आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग की चिंता करनी होगी. व्यापार की जगह सर्वोदय और जनहित पर ध्यान देना होगा. अब जैसा दिख रहा है सरकार सारी लड़ाई व्यक्ति पर छोड़ती जा रही है . स्वराज और सर्वोदय का मूल्य बाजार के नफे फायदे के हिसाब में विस्मृत होता जा रहा है और नारे, झूठ , और फरेब के साथ सत्ता-के उत्सव के बीच जीवन खोता जा रहा है .
आज की त्रासदी बोल रही है कि गणतंत्र में गण तिरोहित होता जा रहा है. हम सब एक समाज के रूप में इतने लाचार कैसे होते जा रहे हैं और कहाँ पहुंचेंगे यह बड़ा प्रश्न है जो हमारे स्वभाव में लगातार आ रही गिरावट की गहन तहकीकात चाहता है पर तत्काल की जरूरत यह है कि महामारी से उपज रही त्रासदी का सारे दुराग्रहों से मुक्त हो कर एक जुट हो कर सामना किया जाय . हम सब को संयम और धैर्य के साथ यह कठिन जंग जीतनी होगी. मन में दृढ़ता के साथ जीवन की रक्षा ही सर्वोपरि है .
यदि जीवन बचा रहा तो सब कुछ फिर हो सकेगा. जीवन का कोई विकल्प नहीं है. आज मन और शरीर दोनों के लिए सकारात्मक रूप से प्रतिबद्धता की जरूरत है. इसके लिए सबको आगे आ कर सहयोग करने की जरूरत है.
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