अहमदाबाद सीरियल ब्लास्टः जब दहल उठा था सिविल हॉस्पिटल का ‘दिल’
१२ वर्षों में सेवा-शुश्रूषा और संवेदना के मरहम से भर गए घटना के गहरे घाव
२००१ का भूकंप हो या २००८ के बम धमाके या फिर २०२० में कोरोना, हमेशा बेजोड़ रही है
अहमदाबाद सिविल हॉस्पिटल की सेवाः गत १२ वर्ष में ९५ लाख मरीजों ने उठाया सेवा-लाभ
२६ जुलाई, २००८… जब अहमदाबाद का सिविल हॉस्पिटल भी बम धमाकों से दहल उठा था। उस भयावह दिवस को शायद हर कोई भूल जाना चाहता है, लेकिन भूलना इतना आसान भी नहीं होता। हालांकि आपत्ति को भूलकर तेजी से उठ खड़ा होना गुजरात का स्वभाव है और गुजरात के इस ‘स्वभाव’ का ‘प्रभाव’ सिविल हॉस्पिटल में भी नजर आता है। गुजरात या देश नहीं बल्कि एशिया के सबसे बड़े इस सिविल हॉस्पिटल में रोजाना हजारों मरीज आते हैं। शायद इतनी अधिक तादाद में मरीजों के उपचार और सेवा-शुश्रूषा ने ही सिविल को जीवंत बनाए रखा है। २००८ के सीरियल ब्लास्ट से लेकर वर्ष २०२० तक १२ वर्षों के दौरान सिविल हॉस्पिटल में कुल ९५,६०,८२५ मरीजों ने उपचार लाभ प्राप्त किया है। जिसमें ओपीडी अर्थात बाह्य रोगी के रूप में ८३,७३,५४६ और आईएनडी यानी भर्ती होने वाले ११,८७,२७९ मरीज शामिल हैं। आपदा चाहे प्राकृतिक हो या मानव निर्मित, दोनों ही मामलों में सिविल हॉस्पिटल चट्टान की तरह अडिग खड़ा रहा है और मरीजों की सेवा-शुश्रूसा की अविरत गंगा यहां बहती रही है। वापस लौटते हैं उस घटना पर… ४,३८० दिन हो चुके हैं बम धमाकों की उस घटना को बीते। हालांकि,धमाके के उस भयावह दिन डॉक्टर, पैरा मेडिकल स्टाफ सहित समूचा हॉस्पिटल स्तब्ध हो गया था, लेकिन कुछ ही मिनटों में पूरा तंत्र तेजी के साथ काम में जुट गया।
सिविल हॉस्पिटल में आज भी सेवारत और धमाके की उस घटना के गवाह मुकेशभाई पटणी कहते हैं, “बम धमाके के बाद हतप्रभ हॉस्पिटल का पूरा स्टाफ महज १५ मिनट में ही वापस अपना कर्तव्य अदा करने को हाजिर हो गया था। एक-एक बिस्तर पर १० से १५ डॉक्टर सेवा के लिए प्रयासरत थे। तब से लेकर आज तक मरीजों के प्रति सिविल हॉस्पिटल का निःस्वार्थ सेवा-भाव उतनी ही मुस्तैदी और संवेदना से जारी है, उसमें रत्ती भर की भी कमी नहीं आई है।”
इस इलाके में रहने वाले एक समाजसेवी दिनेशभाई दूधात कहते हैं, “पूरे अहमदाबाद में सिलसिलेवार बम धमाके हुए थे। बापूनगर में भी ब्लास्ट हुआ था, घायलों की संख्या बहुत ज्यादा थी। मैं धनवंतरि हॉस्पिटल की एंबुलेंस में मरीजों को लेकर सिविल हॉस्पिटल आया था। ट्रोमा सेंटर पहुंचकर हम मरीजों को एंबुलेंस से उतार ही रहे थे कि बम धमाके की गूंज से समूचा परिसर थर्रा उठा। अनगिनत लोग जख्मी हो गए थे। किसी के अंग बिखर गए थे, तो किसी का परिवार…” घटना की याद ताजा करते हुए दिनेशभाई के चेहरे की पीड़ा बहुत कुछ बयान कर रही थी। उन्होंने कहा, “धमाके के बाद बर्बादी का वह मंजर लगभग एक साल तक मेरे मन- मस्तिष्क पर छाया रहा। आज भी उन दृश्यों की याद आती है तो कलेजा कांप उठता है। शायद सिविल हॉस्पिटल में मरीजों के प्रति सेवा-शुश्रूषा के भाव ने ही हमारे जख्मों पर मरहम लगाया है। धमाकों में मैं भी घायल हो गया था, लेकिन घायल मरीजों की सेवा करते-करते मुझे अपनी चोट का एहसास ही न रहा।”
सिविल हॉस्पिटल में विशेष कार्य अधिकारी डॉ. प्रभाकर कहते हैं, “ट्रोमा सेंटर सिविल हॉस्पिटल का ‘दिल’ है। उस धड़कते हृदय पर जो पाशविक हमला हुआ था, उसे हम भुला नहीं सकते। हालांकि, उस घटना के तानेबाने को हृदय के एक कोने में दबाकर सिविल हॉस्पिटल ने मरीजों के प्रति सेवा-शुश्रूषा को और भी त्वरित एवं संवेदनशील बनाया है।” डॉ. प्रभाकर कहते हैं कि, वह तो मानव निर्मित आपत्ति थी जबकि आज कोरोना के रूप में प्राकृतिक आपदा ने दस्तक दी है। कोरोना की विभीषिका के बीच भी हॉस्पिटल का हर एक डॉक्टर, नर्स और पैरा मेडिकल स्टाफ उस भाव के साथ मरीजों की सेवा में जुटे हुए हैं मानों वह उनका ही स्वजन हो। वे कहते हैं कि हमारी सेवा-शुश्रूषा और संवेदना में कभी कोई कमी नहीं आई है।
सिविल हॉस्पिटल के मौजूदा सुप्रिटेंडेंट डॉ. जेपी मोदी ने कहा कि एक डॉक्टर के लिए यह महत्वपूर्ण नहीं होता कि मरीज कौन है, अहम बात यह होती है कि मरीज को दर्द क्या है। मरीज के दर्द को कम करने के लिए जो कुछ भी करना पड़े वही उसका पवित्र कर्तव्य होता है। डॉ. मोदी ने कहा कि इसमें कोई शक नहीं है कि १२ वर्ष पहले हुई धमाकों की वह घटना कोई छोटी-मोटी बात तो नहीं ही थी। उस घटना में मैंने अपने प्रिय विद्यार्थी डॉ. प्रेरक और उनकी गर्भवती पत्नी को खोया था। उस बात का अफसोस मुझे हमेशा रहेगा। आम तौर पर ऐसी घटनाएं सभी स्थलों पर होती हैं, लेकिन हॉस्पिटल पर आतंकी हमले की यह शायद पहली घटना थी।
घायलों की सेवा करने वालों को ही घायल करने का वह नापाक इरादा था। उसे लेकर तब हम डॉक्टरों के मन में भी शायद कुछ पल के लिए ही सही, घृणा आ गई थी। परन्तु जल्द ही हमारी संवेदना ने उस घृणा को दरकिनार कर दिया और आज भी हमारे सांसों में रची बसी हुई है। वैश्विक महामारी के इस दौर में कोरोना से पीड़ित मरीजों के प्रति हमारी इस संवेदना ने ही हमें जीवंत रखा है।
डॉ. मोदी ने कहा कि वर्ष २००१ में आए विनाशक भूकंप के दौरान मैं बतौर ऑर्थोपेडिक डॉक्टर सिविल हॉस्पिटल का प्रतिनिधि बनकर चार्टर्ड प्लेन के जरिए सबसे पहले कच्छ पहुंचा था। प्रकृति के कोप से बिखरी जिंदगियों को संवारने के मानव सेवा के वे दिन आज भी स्मृति पटल पर उभर आते हैं।
आपदा प्राकृतिक हो या मानव निर्मित, संवेदना के साथ अपार करुणा का सेवा-झरना आज भी सिविल हॉस्पिटल में अविरत बहता है। सलाम है सिविल हॉस्पिटल को…
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