Supreme Court: आपसी राजामंदी से मुकदमा का निपटारा हुआ तो कोर्ट फीस वापस मिलेगीः सुप्रीम कोर्ट

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सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने अपने एक फैसले में कहा है कि यदि पक्षकार सिविल प्रक्रिया संहिता की धारा 89 के तहत अपने मुकदमे निपटा लेते हैं तो उन्हें मुकदमे की पूरी फीस वापस मिलेगी।


नई दिल्ली, 20 फरवरी: सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने अपने एक फैसले में कहा है कि यदि पक्षकार सिविल प्रक्रिया संहिता की धारा 89 के तहत अपने मुकदमे निपटा लेते हैं तो उन्हें मुकदमे की पूरी फीस वापस मिलेगी। इस मामले में मद्रास उच्च न्यायालय के प्रशासनिक पक्ष के फैसले को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। जिसमें कहा गया था कि सीपीसी की धारा 89, तमिलनाडु न्यायालय शुल्क की धारा 69 ए और वाद मूल्यांकन अधिनियम 1955 में पक्षकारों की बीच अदालती विवाद निपटारे के तरीके शामिल होंगे।

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1955 अधिनियम की धारा 69 ए और सीपीसी की धारा 89 के तहत विवादों के निपटान पर धन वापसी से संबंधित है। इसके अनुसार जहां न्यायालय पक्ष को सीपीसी की धारा 89 में उल्लिखित विवाद के निपटान के किसी भी तरीके के लिए किसी पक्ष को रिफर करता है तो भुगतान किया गया शुल्क वापस कर दिया जायेगा। इसके लिए विवाद निपटान का इंतजार करने की जरूरत नहीं है।
न्यायमूर्ति एम.एम.शांतानागौदर की पीठ ने यह फैसला खारिज कर दिया। पीठ ने कहा है हमारी यह राय में फैसला स्पष्ट रूप से एक बेतुके और अन्याय पूर्ण परिणाम की ओर ले जाता है। जहां पक्षकारों के दो वर्ग बिना संदर्भ के अपने मामले निपटा रहे हैं तो वह फीस वापस लेने के हकदार होंगे।

धारा 89 के तहत विवाद निपटाने के चार तरीके हैः- (ए) पंचायत, (बी) सुलह, (सी) लोक अदालत के माध्यम से निपटान सहित सहित न्यायिक समझौता और (डी) मध्यस्थता।

अदालत में सिविल मुकदमों की फीस कोर्ट फीस मुकदमा वैल्यू ऐक्ट के हिसाब से तय की जाती है। जो आम तौर पर 10 फीसदी तक होती है। अपराधिक मामलों में कोई कोर्ट फीस नहीं ली जाती। अपील करने पर यह तभी ली जाती है। जब निचली अदालत सजा के साथ जुर्माना लगाती है। जुर्माना जमा करने पर ही अदालत में अपील की जा सकती है।

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