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दिल का दोस्त अर्जुन

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  • वानस्पतिक नाम- Terminalia arjuna (टर्मिनेलिया अर्जुना) कुल- काम्ब्रेटेसी (Combretaceae)
  • हिन्दी- अर्जुन, अन्जनी, जमला, अर्जुना
  • अंग्रेजी- अर्जुन, कुम्बुक, कहु, कहुआ (Arjun, Kumbuk, Kahu, Kahua)
  • संस्कृत- अर्जुना, चित्रयोधि, धनन्जया

अर्जुन का पेड़ आमतौर पर जंगलों में पाया जाता है और यह धारियों-युक्त फलों की वजह से आसानी से पहचान में आता है। इसके फल कच्चेपन में हरे और पकने पर भूरे लाल रंग के होते हैं। अर्जुन का वानस्पतिक नाम टर्मिनेलिया अर्जुना है। औषधीय महत्त्व से इसकी छाल और फल का ज्यादा उपयोग होता है। अर्जुन की छाल में अनेक प्रकार के रासायनिक तत्व पाये जाते हैं जिनमें से प्रमुख कैल्शियम कार्बोनेट, सोडियम व मैग्नीशियम प्रमुख हैं। आदिवासियों के अनुसार अर्जुन की छाल का चूर्ण 3 से 6 ग्राम गुड़, शहद या दूध के साथ दिन में 2 या 3 बार लेने से दिल के मरीजों को काफी फायदा होता है। वैसे अर्जुन की छाल के चूर्ण को चाय के साथ उबालकर ले सकते हैं।

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चाय बनाते समय एक चम्मच इस चूर्ण को डाल दें फिर पीयें. इससे उच्च रक्तचाप भी सामान्य हो जाता है। यदि केवल अर्जुन की छाल का चूर्ण डालकर ही चाय बनायें, उसमें चायपत्ती ना डालें तो यह और भी प्रभावी होगा, इसके लिए पानी में चाय के स्थान पर अर्जुन की छाल का चूर्ण डालकर उबालें, फिर उसमें दूध व चीनी आवश्यकतानुसार मिलाकर पीयें हृदय की सामान्य धड़कन जब 72 से बढ़कर 150 से ऊपर रहने लगे तो एक गिलास टमाटर के रस में एक चम्मच अर्जुन की छाल का चूर्ण मिलाकर सेवन करने से शीघ्र ही धड़कन सामान्य हो जाती है। कहा जाता है कि यदि हृदयघात जैसा महसूस होने पर अर्जुन छाल का चूर्ण जीभ पर रख लिया जाए तो तेजी से फायदा करता है।

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