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वाराणसी (Varanasi) में आयोजित अंतर्राष्ट्रीय कार्यशाला में बोले प्रसून दत्त सिंह, महाभारत भारतीय संस्कृति का दस्तावेज है

(Varanasi)

रिपोर्टः डॉ राम शंकर सिंह

वाराणसी (Varanasi) में आयोजित अंतर्राष्ट्रीय कार्यशाला में बोले प्रसून दत्त सिंह, महाभारत भारतीय संस्कृति का दस्तावेज है

वाराणसी, 13 मार्चः हिंदी विभाग, वसंत महिला महाविद्यालय, राजघाट, वाराणसी तथा महात्मा गाँधी अंतर्राष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय के संयुक्त तत्वावधान में शिक्षा विद्यापीठ पंडित मदन मोहन मालवीय राष्ट्रीय शिक्षक एवं शिक्षण अभियान, शिक्षा मंत्रालय, भारत सरकार के अंतर्गत आयोजित द्वि साप्ताहिक अंतर्राष्ट्रीय कार्यशाला के तेरहवें दिन के प्रथम सत्र में डॉ. मीनाक्षी विश्वाल (एसोसिएट प्रोफेसर, शिक्षा विभाग, वसंत महिला महाविद्यालय, राजघाट, वाराणसी), डॉ. बृहस्पति भट्टाचार्य( सह आचार्य, वसंत महिला महाविद्यालय, वाराणसी) और डॉ. राजीव जायसवाल (सह आचार्य, वसंत महिला महाविद्यालय, वाराणसी) ने राष्ट्रीय शिक्षा नीति और शिक्षण तकनीकी (गूगल एल एम एस का प्रयोग) विषय पर समेकित रूप से वक्तव्य दिया।

विशेषज्ञ वक्ताओं ने नई शिक्षा नीति में टेक्नोलोजी के महत्व और गूगल एल एम एस की उपयोगिता पर विस्तार से प्रकाश डाला। विद्यालयों के पाठ्यक्रम में कोडिंग को शामिल किया जाएगा। उन्होंने बताया लैंग्वेज बैरियर को हटाने में टेक्नोलॉजी का प्रयोग कर सकते। वक्ताओं ने गूगल क्लासरूम, गूगल मीट, गूगल डॉक्स, गूगल फॉर्म, गूगल ड्राइव, गूगल स्लाइड्स के विषय में विस्तृत जानकारी दी।
द्वितीय सत्र में प्रो प्रसून दत्त सिंह(विभागाध्यक्ष, संस्कृत विभाग, म.गां, केंद्रीय विश्वविद्यालय, मोतिहारी) ने भारत की ऐतिहासिक गौरवमयी विद्या परंपरा की ओर ध्यान आकृष्ट करते हुए कहा कि हमारे अरण्यकों तथा उपनिषदों में प्राण विद्या और प्रतीकोपासना की दार्शनिक विवेचना की गई है। हमारे उपनिषद् भारतीय संस्कृति के प्राण रूप है।

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प्राचीन वेदांतों में छह प्रकार के वेदांग इंगित किए गए हैं- शिक्षा, कल्प, व्याकरण, निरूक्त, ज्योतिष एवं छंदस् जिनसे वेदों के गूढ़ एवं वास्तविक अर्थ को जानने में मदद मिलती है। हमारे पुराण वैदिक संस्कृत और लौकिक संस्कृत की मध्यवर्ती कड़ी है। इसी प्रकार महर्षि वाल्मीकि कृत “रामायण” में एक आदर्श राष्ट्र की विचारधारा है। वेदव्यास द्वारा विरचित “महाभारत” भारतीय संस्कृति को समग्र रूप में प्रस्तुत करने का दस्तावेज़ है। धर्म, अर्थ, काम तथा मोक्ष का सम्मिलित रूप यह महाभारत है। हमारी भाषा संस्कृति से अटूट रूप से जुड़ी हुई है।

तृतीय सत्र की वक्ता डॉ. ई विजय लक्ष्मी(असिस्टेंट प्रोफेसर, हिंदी विभाग, मणिपुर विशेविद्यालय, इम्फाल) ने मणिपुर की सांस्कृतिक विविधता और मातृभाषा में शिक्षा के विषय पर अपना वक्तव्य दिया। उन्होंने मणिपुर की 33 मान्यता प्राप्त बोलियों को सामने रखा और बताया कि मातृभाषा का हमारी सांस्कृति के साथ गहरा संबंध होता है अपने संस्कृति के स्वरूप को जानने के लिए हमे अपनी भाषा का बोध होना चाहिए अपनी मातृभाषा के प्रति हमे प्रेम अनुभव करना पड़ेगा तभी हम अपनी मातृभाषा को बेहतर तरह से जान पायेंगे। किसी भी अन्य भाषा का ज्ञान होना बुरा नहीं है किंतु हमे अपनी मातृभाषा का ज्ञान होना जरूरी है क्योंकि यही हमारी पहचान है, हमारी अस्मिता का प्रतीक है। जैसे अंग्रेजी भाषा मे हमे सभी तरह की सामग्री आसानी से प्राप्त हो जाती। हमे अपने अपनी मातृभाषा के लिए भी इस तरह का कार्य करना आवश्यक है। उन्होंने कहा कि प्रत्येक भारतवासी को अपनी मातृभाषा के साथ-साथ हिंदी भाषा का भी ज्ञान होना अनिवार्य है।

चौथे सत्र में डॉ. शशिकला त्रिपाठी (विभागाध्यक्ष,हिंदी विभाग, वसन्त महिला महाविद्यालय ,राजघाट, वाराणसी) ने राष्ट्र निर्माण में भाषा की भूमिका ,नई शिक्षा नीति के संदर्भ विषय पर व्याख्यान देते हुए कहा कि भाषा की उपादेयता ही भाषा के महत्व को बढ़ाता है। भाषा राष्ट्रीय अस्मिता की पहचान हैं, यह हमारे संस्कृति में संरक्षित होती है। उन्होंने बताया कि भाषा का मसला बहुत ही जटिल है। कभी वह अपना सकरात्मक भूमिका निभाती है तो कभी नकरात्मक। कई देश भाषा के नाम पर ही बने है। जैसे-नाइजीरिया, बेल्जियम, कनाडा, पाकिस्तान, बांग्लादेश इत्यादि।

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मातृभाषा में शिक्षा प्राप्त कर के हम सुगमता से चीजों को समझ सकते हैं, मातृभाषा से हम कल्पनाशील हो सकते हैं। इसीलिए राष्ट्रीय शिक्षा नीति में मातृभाषा को महत्व दिया गया है। भाषा अपनी संस्कृति, रीति-रिवाज के मूल्य और पहचान को समेटे होती है। कार्यक्रम का संचालन डॉ.सीमा पाण्डेय एवं रश्मि सिंह ने किया। कार्यक्रम की संयोजक डॉ. बंदना झा ने अतिथियों का स्वागत किया।

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