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The mind: शरीर की उम्र बरसो में मापते है, पर मन का भी क्या कोई पैमाना होता है: डॉ दिलीप बच्चानी

~~गजल~~

शरीर की उम्र बरसो में मापते है पर
मन का भी क्या कोई पैमाना होता है।

ये जिस तजुर्बे की बात करते है लोग
वो दिमाग है जो काफ़ी सयाना होता है।

शरीर पर जख्म लगते हैं भर जाते है
बहुत मुश्किल मन को बचाना होता है।

कभी यहाँ कभी वहाँ यायावर है ये
मन का कहा एक ठिकाना होता है।

बिरले लोग ही वश में कर पाते है इसे
उनके कदमों में सारा जमाना होता है।

मन ही राधा और कान्हा भी मन ही
मन ही कबीर जैसा दीवाना होता है।

©डॉ दिलीप बच्चानी

*हमें पूर्ण विश्वास है कि हमारे पाठक अपनी स्वरचित रचनाएँ ही इस काव्य कॉलम में प्रकाशित करने के लिए भेजते है।
अपनी रचना हमें ई-मेल करें writeus@deshkiaawaz.in

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