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काश कोई तो पूछ ले “क़ादिर”(Kadir) आँखों से दरया बहता क्यों है

ग़ज़ल~

kadir

धोका क्यों है

हर मंज़िल पर धोका क्यों है
मौसम बदला-बदला क्यों है

महँगे-महँगे सारे खिलौने
मेरा दिल फिर सस्ता क्यों है

रिश्ते सारे तोड़ चुका जो
ख़्वाब में चुपके आता क्यों है

मैंने तो हक़ बात कही है
फिर ये ज़माना हँसता क्यों है

काश कोई तो पूछ ले “क़ादिर” (Kadir)
आँखों से दरया बहता क्यों है

*हमें पूर्ण विश्वास है कि हमारे पाठक अपनी स्वरचित रचनाएँ ही इस काव्य कॉलम में प्रकाशित करने के लिए भेजते है।
अपनी रचना हमें ई-मेल करें writeus@deshkiaawaz.in

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