बवासीर (Piles) में आराम दिलाता है रवैर
- वानस्पतिक नाम- Acacia catechu (अकैसिया कटच)
- कुल- माय मौसी (Mimosaceae) हिन्दी- खैर, खटिरा, खीर, काथ, कत्था
- अंग्रेजी- कछ ट्री, कटेचु, खैर गम, खबर (Cutch Tree, Catechu, KhaiGum, Khayer)
- संस्कृत- खरोरा
खैर बबूल की प्रजाति का एक येड़ है, जो बबूल कत्था के नाम से भी जाना जाता है। इसका वानस्पतिक नाम अकैसिया कटैचू है। इस वृक्ष की लकड़ी के टुकड़ों को उबालकर निकाला और जमाया हुआ रस कत्था कहलाता है, जिसे पान में चूने के साथ लगाकर खाया जाता है। मसूड़ों से खून आने पर खैर की छाल को पानी में उबालकर गरारे करने से रक्तस्राव रुक जाता है।
त्वचा के रोगों को ठीक करने के लिए खैर की छाल को पानी में उबालकर स्नान करना चाहिए। (Piles) बवासीर के मरीजों के लिए डाँग के आदिवासी खैर के बुरादे को रीठे की छाल की राख के साथ मिलाकर 15 ग्राम मक्खन में मिलाकर सुबह-सुबह लेने की सलाह देते हैं, उनके अनुसार इससे काफी आराम मिलता है। यह मिश्रण सात दिनों तक लगातार लेना होता है।
बबूल की तरह इसमें भी एक प्रकार का गोंद निकलता है जो बहुत औषधीय महत्त्व का होता है। खैर कई रोगों, जैसे- कुष्ठ रोग, मुख रोग, मोटापा, खांसी, चोट, घाव, रक्त पित्त आदि को दूर करता है। इसका प्रयोग रक्तमेह, रक्तस्राव, सूजन, वमन, अतिसार, कीड़े, प्रमेह, रक्तप्रदर, श्वेतप्रदर (Piles) आदि को दूर करने के लिए भी किया जाता है। यह योनि की सूजन को दूर करता है। खैर दाँतों के रोग, मूत्र रोगों तथा त्वचा रोगों में भी बहुमूल्य औषधि के रूप में काम आता है।
यह भी पढ़े…..Bhavnagar-Bandra: भावनगर-बान्द्रा स्पेशल ट्रेन 16 फरवरी से प्रतिदिन चलेगी